गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

आईना मन का !!!!


आईना मन का
संवारे घड़ी-घड़ी रूप अपना
करे श्रृंगार जब प्रेम का
तो खुद ही ये इतराये
उदासी की सूरत में
पलकें भी न झपकाये
कोई इसको
कितना भी समझाये!
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पगला है मन कहते हैं सब
पल में खुश पल में नाखुश
इसकी खुशियों का हिसाब
रखते हुए जिंदगी
कई बार चूक कर जाती है
रिश्‍तों के गणित में
शून्‍य आता है जब परिणाम
तो नये सिरे से करती है
ज़मा और घटे का हिसाब
पर कहाँ मिलता है सू्त्र
जो मन को हमेशा
सौ में सौ दे सके!!
...
मन राजा हो तो
कुछ न होकर भी
बहुत कुछ होता है पास
संतोष का धन
हमेशा खजाने में
होना ज़रूरी है
फिर ये अमीरी 
ताजिंदगी साथ रहती है !!!!

सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

आँखें हो उठती धुँआ-धुँआ !!!

किसी यक़ीन के
टुकड़े उठाये हैं तुमने
उन लम्‍हों में दर्द ने
झकझोरा है क्‍या तुम्‍हें 
कभी किसी यक़ीन ने
बेबस किया तो
एक चीख
गले में आकर
जाने क्‍यूँ 
दम तोड़ गई !
...
कुछ चीखें
खुशी के कम
दर्द के ज्‍यादा करीब होती हैं
इनकी आवाज़ों पे
अश्‍कों का बहना ही नहीं होता
जाने कितनी जि़ंदगियां
बुतों में तब्‍़दील हो
मनाती हैं सोग 
इन चीखों का !!
...
ये चीखें
दिलों के पार ही नहीं जाती
जाती हैं दरवाज़ों के
दीवारों के पार भी
खड़ा कर देती हैं मातम़
जहाँ बिना लकडि़यों के भी
सुलगती है एक आग
और आँखें हो उठती धुँआ-धुँआ !!!

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