गुरुवार, 22 मई 2014

सम्‍बंधों का सेतु !

 सम्‍बंधों का सेतु
अपनी अडिगता पर
कई बार होता है अचंभित
जब वो कई बार चाहकर भी
अपने दायित्‍वों से
विमुख नहीं हो पाता
हर परीस्थिति में
टटोलता है खुद को
करता है अनगितन प्रश्‍न
अपने ही आप से
सम्‍बंधों का सेतु !
....
उसके स्‍तंभों में
विश्‍वास का सीमेंट
भरा गया था कूट-कूटकर
उसने सीख लिया था
अडिगता का पाठ
कल-कल करती नदिया के बीच
जो कहती जाती थी
उससे दूर जाते हुए हर बार
तुम्‍हें परखा जाएगा
पर तुम्‍हें रहना होगा अडिग
मेरी नियति बहना है जैसे वैसे ही तुम्‍हें
बस हर हाल में अडिग रहना है !!!  

.....

शुक्रवार, 9 मई 2014

मेरी हैरानियों का जवाब बस माँ !!!!













माँ तुम और तुम्‍हारा धैर्य
मुझे कई बार
विस्मित करता है
तुम्‍हारी घबराहट
मुश्किल पलों में
जब बनती है संबल
पापा हौले से मुस्‍करा देते
उनकी वो मुस्‍कान
जानती हूँ होता है
अभिनंदन तुम्‍हारा !
...
मेरी हैरानियों का जवाब
बस माँ होती है
रोज सुबह उठती
कर्तव्‍यों की सीढियों पर
बढ़ाती कदम दर कदम
बंदिशों की चौखट को पार कर
पहुँचती निश्चित वक्‍़त
कार्यक्षेत्र पर अपने
इस मंत्र को साकार करते हुए
कर्मण्ये वाधिकारस्ये
मा:फलेशु तदाचन: !!
...
पर चाहती हूँ आज तुम उठो 
सिर्फ औ’ सिर्फ
उगते सूरज को देखने के लिये
भोर में सुनो
चिडि़यों की चहचहाहट
कुछ गुज़रे पलो संग मुस्‍कराओ
हँसकर जिंदगी को गले लगाओ
मातृत्‍व दिवस के दिन को
अपनी सहज़ मुस्‍कान :) सा
बस निश्‍छल बनाओ !!!!

शुक्रवार, 2 मई 2014

मन की स्‍लेट पर !!!!

कई बार
कुछ स्‍नेहिल थपकियां
मासूमियत का माथा चूमकर
आ बैठती तन्‍हां ही
लगाती हिसाब
मन की स्‍लेट पर
कुछ जोड़ती कुछ घटाती
कुछ लिखकर फिर मिटाती !
­­­­...
लम्‍हा-लम्‍हा सिमटते एहसास
कई बार बातूनी हो जाते हैं
जैसे कोई अबोध बालक
बिना सही- गलत को जाने
कह उठता है जब भी
अपने हिस्‍से का सच तो
मुस्‍कान दम तोड़ देती है
गला रूंध जाता है
एक मौन खामोशी से 
कितना कुछ कह जाता है  !!
...
खामोशियों के रास्‍ते अक्‍़सर 
गुज़रे वक्‍़त का हमसाया बन
ढेरों बाते करते हुये 
मुड़ते हैं जब किसी अंजाने मोड़ पर
तो बस इतना ही कहते हैं
वक्‍़त के साथ -साथ
चलते जाना ही जिंदगी का नाम है
बड़ा ही खूबसूरत जिंदगी का 
सबको ये पैगाम है !!!!!!