उसे पोलियो हो गया !
हर बार दिये मैने उसे
विश्वास की उंगलियों से
दो बूँद जिंदगी की तरह
संस्कार समय-समय पर
फिर भी जाने कैसे ??
अपाहिज़ हो गया उसका मस्तिष्क !!!!!!!
....
कभी विचार पूर्वक उसने
रखे नहीं दो कदम
जब भी निर्णय लिया एकांगी
जब भी जिद् पे अड़ा
अपने ही मन की उसने की सदा
कभी सामने वाले की
भावनाओं को समझा ही नहीं
तुम ही कहो
आखिर हुआ न वह पोलियोग्रस्त
अपनी मैं पर उछलता हुआ
....
भरी भीड़ में भी अकेला
कोई साथ नहीं चलना चाहता उसके
या वही होना चाहता है
लक़ीर का फ़कीर
तभी तो मैं के गुमान में
अपाहिज़ मस्तिष्क लिये
सच सुनते ही बौखला उठता है
और मैं सोचती रही
संस्कारों के नियमित दिये जाने पर भी
यह कैसा दुष्परिणाम !!!
हर बार दिये मैने उसे
विश्वास की उंगलियों से
दो बूँद जिंदगी की तरह
संस्कार समय-समय पर
फिर भी जाने कैसे ??
अपाहिज़ हो गया उसका मस्तिष्क !!!!!!!
....
कभी विचार पूर्वक उसने
रखे नहीं दो कदम
जब भी निर्णय लिया एकांगी
जब भी जिद् पे अड़ा
अपने ही मन की उसने की सदा
कभी सामने वाले की
भावनाओं को समझा ही नहीं
तुम ही कहो
आखिर हुआ न वह पोलियोग्रस्त
अपनी मैं पर उछलता हुआ
....
भरी भीड़ में भी अकेला
कोई साथ नहीं चलना चाहता उसके
या वही होना चाहता है
लक़ीर का फ़कीर
तभी तो मैं के गुमान में
अपाहिज़ मस्तिष्क लिये
सच सुनते ही बौखला उठता है
और मैं सोचती रही
संस्कारों के नियमित दिये जाने पर भी
यह कैसा दुष्परिणाम !!!
तभी तो मैं के गुमान में
जवाब देंहटाएंअपाहिज़ मस्तिष्क लिये
सच सुनते ही बौखला उठता है
और मैं सोचती रही
संस्कारों के नियमित दिये जाने पर भी
यह कैसा दुष्परिणाम !!!
क्या बात है बहुत सुंदर रचना .............
bahut sundar rachna....aaj ki sooch aaj ki kahani...
जवाब देंहटाएंमस्तिष्क को झकझोरती प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंसदा आभार आदरेया-
दो बूंदे जिंदगी की, पल पल रही पिलाय |
लेकिन लकवा ग्रस्त मन, अंग विकल लंगड़ाय |
अंग विकल लंगड़ाय, काम ना करता माथा |
पद मद में मगरूर, नकारे स्नेहिल गाथा |
नीति नियम शुभ रीति, देखकर आँखें मूंदे |
इष्ट मित्र परिवार, बहा लें दो दो बूंदे-
अत्यंत मार्मिक रचना दीदी बखूबी बयां किया है आपने. बधाई
जवाब देंहटाएंसच ही है यह कैसा दुष्परिणाम .... विचारणीय
जवाब देंहटाएंसंस्कारों के साथ कुछ उसका मैं भी तो चलेगा !
जवाब देंहटाएंअपना अपना प्रारब्ध !
यह मै कहां ले जाता है हमे .........
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ।।।
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
दूर तक सोचने पर मजबूर करती उम्दा रचना ..
जवाब देंहटाएंमस्तिष्क को झकझोरती प्रस्तुति,बधाई
जवाब देंहटाएंतभी तो मैं के गुमान में
जवाब देंहटाएंअपाहिज़ मस्तिष्क लिये
सच सुनते ही बौखला उठता है
और मैं सोचती रही
संस्कारों के नियमित दिये जाने पर भी
यह कैसा दुष्परिणाम !!!
आज की यही है विडम्बना
मैं भी सोचती ही जा रही हूँ..
जवाब देंहटाएंhona hi tha .jahan main hai vahan kuchh bhi nahi kaha bhi hai -
जवाब देंहटाएं''jab main tha tab hari nahi .''
.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार सौतेली माँ की ही बुराई :सौतेले बाप का जिक्र नहीं आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
मैं के गुमान में
जवाब देंहटाएंअपाहिज़ मस्तिष्क लिये
सच सुनते ही बौखला उठता है
और मैं सोचती रही
संस्कारों के नियमित दिये जाने पर भी
यह कैसा दुष्परिणाम !!
इन पंक्तियों में क्या गज़ब की बात कह दी आपने सदा जी!...आज के भौतिकवादी समाज में ऐसे लोगों की भरमार है...मनुष्य सामजिक नहीं आत्मकेंद्रित प्राणी हो चुका है...यह एक मनोवैज्ञानिक संकट है. इस नज़्म के लिए बहुत बहुत बधाई!
सदा जी ,ये ही जिन्दगी का सच है...
जवाब देंहटाएं"मैं" हो जाता है जब सामने खड़ा
कुछ नज़र नही आता "मैं" से बड़ा |
शुभकामनायें!
चिंतनीय भी विचारणीय भी ,
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना
अपाहिज मस्तिष्क के साथ तो कोई भी नहीं चलता है।
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंबढिया रचना
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा एवं मार्मिक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमैं की भावना रखने वाले सच में एक तरह से अपाहिज़ ही होते हैं ..संस्कारों की बात इनके आगे बेमानी हैं ..
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना ...
सारे लक्षण मनो रोगियों के हैं .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
जवाब देंहटाएंमैं के गुमान में
जवाब देंहटाएंअपाहिज़ मस्तिष्क लिये
सच सुनते ही बौखला उठता है
और यही जिन्दगी की सच्चाई है,,,
Recent post: रंग,
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसदा जी आपका कहना "मैं के गुमान में
जवाब देंहटाएंअपाहिज़ मस्तिष्क लिये
सच सुनते ही बौखला उठता है
और मैं सोचती रही
संस्कारों के नियमित दिये जाने पर भी
यह कैसा दुष्परिणाम !!!" बिलकुल सही है परन्तु शायद इसका दूसरा पहलू यह है की पूरा समाज को पोलियो हो गया है संस्कार का डोज लेने वालों को नहीं.
latest post होली
jhkjhorti prastuti,dil ko dahladeni vali vytha katha pida
जवाब देंहटाएंईश्वर ऐसे पोलियो से सबको बचाए.......ये स्वरुप बढ़िया है ब्लॉग का :-)
जवाब देंहटाएंबूंद भर संस्कारों की डोज़। जबकि पोलियो के वायरस ने गला पहले से ही अवरुद्ध कर रखा था। बूंद गले के नीचे उतर पाती तो दिमाग को लकवा न मारता!!
जवाब देंहटाएंसंस्कारों के नियमित दिये जाने पर भी
जवाब देंहटाएंयह कैसा दुष्परिणाम !!!
प्रारब्ध ही कह सकते हैं इसे ...
गहन अभिव्यक्ति ....
सदा जी आपके पहले ब्लॉग टेम्पलेट में कुछ वायरस था ...खुलता ही नहीं था .....कई दिनो से आपका ब्लॉग नहीं पढ़ पा रही थी ...अच्छा है ये नया टेम्पलेट भी ....
आज संस्कार समाज से ज्यादा सीखता है इंसान ...
जवाब देंहटाएंवो जो ग्रहण काना चाहता है खुद ही करता है ... किसी के द्वारा कुछ देने से कहाँ सीखता है कोई ...
कभी विचार पूर्वक उसने
जवाब देंहटाएंरखे नहीं दो कदम
जब भी निर्णय लिया एकांगी
जब भी जिद् पे अड़ा
बस यही जिद तो सभी फसाद की जड़ बन गई ....
विश्वास की उंगलियों से
जवाब देंहटाएंदो बूँद जिंदगी की तरह
संस्कार समय-समय पर
फिर भी जाने कैसे ??
अपाहिज़ हो गया उसका मस्तिष्क
पूरी देखभाल के बाद भी कब और कहाँ से मिलावट आ जाती है कहना मुश्किल है .... बहुत गहन भाव लिए सुन्दर प्रस्तुति ... सोचने पर मजबूर करती हुई
तभी तो मैं के गुमान में
जवाब देंहटाएंअपाहिज़ मस्तिष्क लिये
सच सुनते ही बौखला उठता है
और मैं सोचती रही
संस्कारों के नियमित दिये जाने पर भी
यह कैसा दुष्परिणाम !!!
....आज का कटु सत्य...बहुत सुन्दर..
बेहतरीन भाव संयोजन....जब मस्तिष्क ही अपाहिज हो तो दो बूंद ज़िंदगी के संस्कार भी अच्छा परिणाम कहाँ से देंगे।
जवाब देंहटाएं"मैं" के आगे दो बूँद संस्कारों की नहीं चलती. अपाहिज होना निश्चित ही है... गहन भाव... सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंतभी तो मैं के गुमान में
जवाब देंहटाएंअपाहिज़ मस्तिष्क लिये
सच सुनते ही बौखला उठता है
और मैं सोचती रही
संस्कारों के नियमित दिये जाने पर भी
यह कैसा दुष्परिणाम !
सुन्दर प्रस्तुति | बधाई
बहुत सटीक प्रस्तुति ...परिवर्तन तो अवश्यंभावी है परंतु चिंता होती है नई पीढ़ी के रवैये पर ...संदेह होता है परवरिश के अपने ही तरीकों पर
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