जिन्दगी को बेखौफ़ होकर जीने का
अपना ही मजा है
कुछ लोग मेरा अस्तित्व खत्म कर
भले ही यह कहने की मंशा मन में पाले हुये हों
कभी थी, कभी रही होगी, कभी रहना चाहती थी नारी
उनसे मैं पूरे बुलन्द हौसलों के साथ
कहना चाहती हूँ, मैं थी, मैं हूँ, मैं रहूँगी ....
न्याय की अदालत में गीता की तरह
जिसकी शपथ लेकर लड़ी जाती है
हर लड़ाई - सत्य की,
जहाँ हर पराज़य को विजय में बदला जाता है
....
गीता धर्म की अमूल्य निधि है जैसे वैसे ही
मेरा अस्तित्व नदियों में गंगा है,
मर्यादित आचरण में आज भी मुझे
सीता की उपमा से सम्मानित किया जाता है
धीरता में मुझे सावित्री भी कहा है
तो हर आलोचना से परे वो मैं ही थी जो
शक्ति का रूप कहलाई दुर्गा के अवतार में
....
मुझे परखा गया जब भी कसौटियों पर,
हर बार तप कर कुंदन हुई मैं
फिर भी मेरा कुंदन होना
किसी को रास नहीं आता
हर बार वही कांट-छांट
वही परख मेरी हर बार की जाती,
मैं जलकर भस्म होती
तो औषधि बन जाती
यही है मेरे अस्तित्व की
जिजीविषा जो खुद मिटकर भी
औरों को जीवनदान देती है, देती रहेगी !!!
मैं पूरे बुलन्द हौसलों के साथ फिर से
कहना चाहती हूँ, मैं थी, मैं हूँ, मैं रहूँगी ....
बहुत सुन्दर-
जवाब देंहटाएंआभार आदरेया-
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंवाह ... जीवन का जयघोष करती बेहतरीन पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बेहतरीन पोस्ट..
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन जज़्बा
जवाब देंहटाएंहमको मिटा सके ज़माने में दम नहीं.....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और सशक्त अभिव्यक्ति...
सस्नेह
अनु
बहुत सुन्दर सशक्त अभिव्यक्ति ...वाकई औरत होने पर गर्व होने लगा है अब !!!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंहमसे ज़माना है ज़माने से हम नहीं .ये सारी कायनात हम चलाये हैं .
बहुत बेहतरीन सुंदर अभिव्यक्ति,,,
जवाब देंहटाएंRecent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
जिजीविषा जो खुद मिटकर भी
जवाब देंहटाएंऔरों को जीवनदान देती है, देती रहेगी !!!
मैं पूरे बुलन्द हौसलों के साथ फिर से
कहना चाहती हूँ, मैं थी, मैं हूँ, मैं रहूँगी ....
प्रेरणादायी शब्द..सत्यापित शब्द..आभार !
बहुत सही बहुत सुन्दर प्रस्तुति आभार हाय रे .!..मोदी का दिमाग ................... .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंAchhe shbd...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति,आभार.
जवाब देंहटाएंगहन भावों को समेटे सुन्दर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंमैं जलकर भस्म होती
जवाब देंहटाएंतो औषधि बन जाती
यही है मेरे अस्तित्व की
जिजीविषा जो खुद मिटकर भी
औरों को जीवनदान देती है, देती रहेगी !!!
नारी अस्मिता को परिभाषित करती लाजवाब कविता.
जवाब देंहटाएंआत्म विश्वास की पराकाष्ठा को प्रस्तुत करती रचना -बहुत सुन्दर
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सटीक उद्बोधन!! आस्था का अमरदीप!! सार्थक अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंसुज्ञ: तनाव मुक्ति के उपाय
बेहतरीन अभिव्यक्ति .....
जवाब देंहटाएंप्रेरणा दायक उद्बोधन ...
जवाब देंहटाएंआत्मविश्वास का प्रतीक है ये रचना ... सार्थक अभिव्यक्ति ...
जयनाद करती बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमुझे परखा गया जब भी कसौटियों पर,
जवाब देंहटाएंहर बार तप कर कुंदन हुई मैं
फिर भी मेरा कुंदन होना
किसी को रास नहीं आता
हर बार वही कांट-छांट
वही परख मेरी हर बार की जाती,.....
आखिर कब तक.......
बहुत सुंदर भाव.....जय हो....
साभार.....
वाह...!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आभार!
मैं पूरे बुलन्द हौसलों के साथ फिर से
जवाब देंहटाएंकहना चाहती हूँ, मैं थी, मैं हूँ, मैं रहूँगी ....
...यह ज़ज्बा कायम रहे...बहुत सशक्त अभिव्यक्ति...
सार्थक और विचारपरक
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
बधाई
तप कर कुंदन होता है व्यक्ति..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंसब से जरूरी बात यही है कि, "मैं थी , मैं हूँ और मैं रहूँगी !"
आज की ब्लॉग बुलेटिन होली तेरे रंग अनेक - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-03-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ |
मैं थी, मैं हूँ, मैं रहूँगी ...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही... विश्वास से भरी बेहतरीन अभिव्यक्ति... शुभकामनायें
विचारणीय और मर्मस्पर्शी भाव
जवाब देंहटाएंफिर भी मेरा कुंदन होना
जवाब देंहटाएंकिसी को रास नहीं आता
हर बार वही कांट-छांट
वही परख मेरी हर बार की जाती,
सब जानते हैं की नारी शक्तिस्वरूपा है और इसी भावना के तहत अपने को ऊंचा साबित करने के लिए सारे प्रपंच रचे जाते हैं .... सुंदर अभिव्यक्ति
Vartmaan ke paripekshya me satik aur behtarin rachna...
जवाब देंहटाएंNamskar.
मुझे परखा गया जब भी कसौटियों पर,
जवाब देंहटाएंहर बार तप कर कुंदन हुई मैं
फिर भी मेरा कुंदन होना
किसी को रास नहीं आता
हर बार वही कांट-छांट
वही परख मेरी हर बार की जाती,
मैं जलकर भस्म होती
तो औषधि बन जाती
यही है मेरे अस्तित्व की
जिजीविषा जो खुद मिटकर भी
औरों को जीवनदान देती है, देती रहेगी !!!
मैं पूरे बुलन्द हौसलों के साथ फिर से
कहना चाहती हूँ, मैं थी, मैं हूँ, मैं रहूँगी ....
मर्मस्पर्शी
दुर्गा दुर्गति दूर करतीं हैं .. ....और अस्तित्व और प्रबल होता जाता है ....!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
वाह्ह्ह्हह्ह एक सार्थक और सुन्दर रचना
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