गुरुवार, 12 जुलाई 2012

वो गूंगी नहीं थी !!!

वो गूंगी नहीं थी,
उसे बोलना आता था,
उसे देता था दिखाई
सुनती रहती थी
धड़कनों की उथल-पुथल को
पर वह बस
खा़मोश रहती थी
मुहब्‍बत की हद़ से
वाक्रिफ़ थी
इसलिए कुछ कहती नहीं थी!!!

24 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ....
    दिल को छू गयी ये चंद पंक्तियाँ.
    सस्नेह
    अनु

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  2. खामोश रहकर भी बहुत कुछ कह गई ...बहुत सुन्दर..सदाजी

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  3. वाह
    मुहब्बत की खामोश दास्ताँ
    लफ्जों से परे.....

    जवाब देंहटाएं
  4. मुहब्‍बत की हद़ से
    वाक्रिफ़ थी
    इसलिए कुछ कहती नहीं थी!!!

    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  5. मुहब्‍बत की हद़ से
    वाक्रिफ़ थी
    इसलिए कुछ कहती नहीं थी!!!

    बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,

    RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह बहुत खुबसूरत।

    जवाब देंहटाएं
  7. उफ़ .... इस मुहब्बत की हद भी कितनी दूर होती है .... पास नहीं आती ... खामोश रखती है ...

    जवाब देंहटाएं
  8. मन की रागात्मकता को दुलारती सी प्रस्तुति .बढ़िया ,शानदार ,जानदार .शुक्रिया ब्लॉग पे आने का उत्साह बढाने का .

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  9. मुहब्बत को शब्द चाहिए कहां
    मुहब्बत थी,इतना बहुत था!

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर....
    क्या छुपा रक्खा हृदय में राज सारे खोल दें।
    तुम रहो खामोश जब भी नैन तेरे बोल दें।


    सादर।

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  11. सहते-सहते हो गयी, वो कितनी मजबूर।
    सन्तापों ने कर दिया, उसको सबसे दूर।।

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  12. मुहब्‍बत की हद़ से
    वाक्रिफ़ थी
    इसलिए कुछ कहती नहीं थी!!!
    .....

    देखन में छोटी लगें घाव करें गंभीर सदा कि ही तरह बहुत गंभीर भाव !

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  13. इतने कम शब्दों में इतनी सुंदर प्रस्तुति ...वाह वाह वाह ....और क्या कहूँ !!!बस वाह !

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  14. कुछ लड़कियों को तो संस्कार मिलता है कि चुप्पी भी एक गहना है. धड़कनों में यदि उथल पुथल हो तो खुल कर बोलना बेहतर होता है. बहुत सुंदर कविता.

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....