धुंआ अकेला कहां होता है
उसके लिए आग का होना जरूरी है
फिर वह धुंआ
मन्दिर में जलते अगर का हो
या किसी यज्ञशाला में
होते हवन का ...
उसकी पहचान तो हो ही गई ...
लेकिन जिन्दगी का
धुंए सा होना
मुमकिन नहीं है
वह तो एक लक्ष्य लेकर चलती है
जिन्दगी का लक्ष्य मृत्यु है
लेकिन इस लक्ष्य की प्राप्ति होने तक
वह रूह से रूह का नाता
बड़ी ही बेबाकी से निभाती है
जैसे दिये में तेल भी है बाती भी है
लेकिन अग्नि का स्पर्श नहीं हुआ तो
कैसे कहेंगे ज्योति है ?... दीपक है ?
जब अग्नि है तभी तो धुंआ है
जिन्दगी है तभी तो मृत्यु है
धड़कन है तभी तो
रूह का होना भी सत्य है ...
वर्ना शरीर क्या है ?...एक पुतला
ज्यों माटी का खिलोना ... !!!
धुंआ है , रूह है .... फिर भी सन्नाटा तो है
जवाब देंहटाएंसही है...आग का होना जरूरी है।
जवाब देंहटाएंBehtareen...kya khoob kahi hai...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंजैसे दिये में तेल भी है बाती भी है
लेकिन अग्नि का स्पर्श नहीं हुआ तो
कैसे कहेंगे ज्योति है ?... दीपक है ?
वाह!!
भई बहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंजिन्दगी है तभी तो मृत्यु है
जवाब देंहटाएंधड़कन है तभी तो
रूह का होना भी सत्य है ...
rahasya hi to hai jindgi
धड़कन है तभी तो
जवाब देंहटाएंरूह का होना भी सत्य है ...
वर्ना शरीर क्या है ?...एक पुतला
ज्यों माटी का खिलोना ... !!!
गहन दार्शनिक कविता।
सादर
कल 27/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
gahan soch ko darshati abhivyakti bahut khoob.
जवाब देंहटाएंजब अग्नि है तभी तो धुंआ है
जवाब देंहटाएंजिन्दगी है तभी तो मृत्यु है
.......क्या बात है कितनी सकारात्मक बात सच है सदा जी से सहमत अच्छी व सच्ची रचना...!
वर्ना शरीर क्या है?..एक पुतला,माटी का खिलोना!!!!!
जवाब देंहटाएंसुंदर पन्तियाँ भावपूर्ण बहुत अच्छी रचना,.....
मेरी नई रचना"काव्यान्जलि".."बेटी और पेड़".. में click करे,.....
लाजबाब है आपकी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंपढकर मन प्रसन्न हो गया है.
आभार.
आने वाले नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.वाह ,क्या बात है..
जवाब देंहटाएंज़िंदगी है तभी मृत्यु है ..आग है तो धुआं है ..सुन्दर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट|
जवाब देंहटाएंसुन्दर चिंतन... भावप्रवण अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
agni ka dhuna se sharir ka ruh se......... bhavpran srthak post .
जवाब देंहटाएंsab ko sahaare kee
जवाब देंहटाएंzaroorat hotee hai
ek ke binaa doosraa adhooraa
बेहद गहन अभिव्यक्ति सत्य को उदघाटित करती।
जवाब देंहटाएंbehtarin abhivykti.....
जवाब देंहटाएंजीवन और मृत्यु का सटीक विशलेषण किया है आपने।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता को समर्पित चंद लाइने:-
जीवन क्षणिक,सतत है मृत्यु।
जीवन झूठ,मगर सच मृत्यु।
जीवन का है नहीं भरोसा,
लेकिन सबकी निश्चित मृत्यु।
जीवन में दुख ही दुख होते।
दुख से मुक्ति,हो जब मृत्यु।
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंगहरी अभिव्यक्ति।
जीवन दर्शन समेटे हुए है आपकी यह रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंगहन जीवन दर्शन की प्रभावी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंऔर इस खिलौने का नाजो-नखरा संभाले नहीं संभलता है ..
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच-741:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
लाजवाब जीवन दर्शन
जवाब देंहटाएंधुंआ है तो आग होगी। आग है तो धुंआ होगा ही। जीवन की यही कहानी है।
जवाब देंहटाएंसांसों का चलना ही धड़कन है धड़कन है तो जीवन है ...
जवाब देंहटाएंसत्य!
वह तो एक लक्ष्य लेकर चलती है
जवाब देंहटाएंजिन्दगी का लक्ष्य मृत्यु है...
jivan ko parbhashit karti kavita ....bahut hi sundar
'
आग,दिया,बाती,तेल जैसे..रुह,शरीर,ज़िंदगी,मौत सबका आपस में संबंध है और इस गहन संबंध को बहुत ही खूबसूरती से लिखा है आपने!!!
जवाब देंहटाएंतन है, पर कुछ धड़क रहा है।
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