शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011
चेहरे पर मुखौटा ....
उतार फेको अपने चेहरे से
ये मुस्कराहट झूठी
ये खिलखलाती हंसी
भ्रमजाल सा बुन दिया है तुमने
मेरे चारों ओर
हर तरफ भीड़ है बस शोर है
हर चेहरे पर मुखौटा है
मन में कुछ चेहरे पर कुछ
कैसी दिनचर्या हो गई है
अपना क्रोध भी छुपाना पड़ता है
पलकों में थमें आंसू रहते हैं
लबों पे दर्द छटपटाता है
फिर क्यूं ...
मुस्कराहट में
दर्द को दबाना पड़ता है
दवाईयों की एक नियमित डोज से
चूक हो गई तो
फिर असहनीय पीड़ा
तब यह खिलखिलाहट
तुम्हारी जिंदादिली सब बेमानी हो जाएंगे
दर्द की दवा नहीं की तो ....
जो तुमसे प्यार करते हैं
तुम्हें कभी उनकी परवाह नहीं होती क्यूं ?
शायद उनकी तरफ से तुम
निश्चिन्त होते हो
जो तुमसे प्यार नहीं करते
तुम उन्हें ही सहेजने के फेर में
दिन रात एक कर देते हो
भूल जाते हो
कोई तुम्हारा अपना
आहत हो गया होगा
तुम्हारे इस व्यवहार से
चेहरे पर मुखौटा मत लगाओ हर वक्त
कभी तो अपने चेहरे पर
आने दो सच्चे प्यार की आभा
खुशी से चहकती आवाज
जिसमें तुम्हारा अस्तित्व नजर आए
तुम्हें भी और दूसरों को भी .... !!!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
लेबल
- 13 फरवरी / जन्मदिन (1)
- काव्य संग्रह 'अर्पिता' (1)
- गजल (1)
- ग़ज़ल (21)
- नया ब्लाग सद़विचार (1)
- बसन्त ... (1)
- यादें (1)
- kavita (30)
ब्लॉग आर्काइव
मेरे बारे में
- सदा
- मन को छू लें वो शब्द अच्छे लगते हैं, उन शब्दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....
bhavapoorn rachana abhivyakti...abhaar
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएं----------
कल 08/10/2011 को आपकी कोई पोस्ट!
नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद
खूबसूरत शब्दों से बुनी गई रचना
जवाब देंहटाएंवाह वाह बहुत सुन्दर भावो को पिरोया है।
जवाब देंहटाएंसही और अच्छा लिखा आपने। मगर एक बात है कि अक्सर व्यक्ति मुखौटा लगाने के लिये मजबूर होता है। वह कई रूप में जी रहा होता है। प्रेमी के रूप में जहां वह प्रेम का गुणगान करता है, वहीं पुत्री का पिता बनते ही सशंकित हो उठता है। जानता है कि उतार कर फेंक देने चाहिए मुखौटे पर यह भी जानता है कि फेंकते ही यह समाज उसे जीने नहीं देगा। खोखली हंसी हंसता, जीता चला जाता है पूरा जीवन।
जवाब देंहटाएंजो तुमसे प्यार नहीं करते
जवाब देंहटाएंतुम उन्हें ही सहेजने के फेर में
दिन रात एक कर देते हो....
खरी खरी...
उत्तम अभिव्यक्ति...
सादर बधाई...
आओ खेल खुला हम खेलें।
जवाब देंहटाएंचेहरे पर मुखौटा मत लगाओ हर वक्त
जवाब देंहटाएंकभी तो अपने चेहरे पर
आने दो सच्चे प्यार की आभा
खुशी से चहकती आवाज
जिसमें तुम्हारा अस्तित्व नजर आए
तुम्हें भी और दूसरों को भी .... !!!
वाह......सुन्दर |
मुखौटे में जो रहते हैं , वे उसे उतारकर सूरज का तेज सह नहीं पाएंगे
जवाब देंहटाएंबढिया प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंमुखौटे ज्यादा समय तक नहीं चल पाते...
आभार
कभी तो आने दो सच्चे प्यार की आभा चेहरे पर भी ...
जवाब देंहटाएंकैसा मोहक प्रस्ताव है ना :)...
यह निश्वार्थ निश्छल प्रेम भीतर से भर देता है जो ना दिखाओ फिर भी चेहरे पर नजर आ ही जाता है :)
काश ये मुखोटे होते ही ना....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति और एक औरत के जीवन का सच मुखोटा....जिसके बिना शायद नारी जीवन सम्भव ही नहीं .....
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने! बढ़िया प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंaaj mukhoto me sach ko pahchaanNa bhi mushkil ho gaya hai. sunder prastuti.
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों से रची गई रचना खूबसूरत....
जवाब देंहटाएंसच है इन मुखौटों में असली चेहरे कहीं खो गए हैं.... पर कब तक ऐसा करते रहेंगें.... ?
जवाब देंहटाएंNice .
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिवयक्ति....
जवाब देंहटाएंउत्तम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंSarthak prastuti..
जवाब देंहटाएंसुंदर भावों से रची बसी अद्भुत कविता.
जवाब देंहटाएंAll are masked. Truth must be unveiled.
जवाब देंहटाएंमुखौटे भला कब ह
जवाब देंहटाएंटते हैं
बहुत सुन्दर रचना
बहुत खूब ....गहरा सोंचने पर मजबूर करती है यह रचना !!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
बहुत बार दिल यही तो करना चाहता है ..सुन्दर लिखा है.
जवाब देंहटाएंमुखौटे वही लगाते हैं, जिनमें हिम्मत नहीं होती ।
जवाब देंहटाएंमोहक प्रस्ताव ....
जवाब देंहटाएं.सार्थक अभिवयक्ति.....
आपने बहुत सुंदर लिखा है..बधाई समय मिले तो मेरे ब्लॉग में आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएं