बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

कुछ टूटता है ...







(1)

इक अश्‍क की बूंद,

फिसलकर

तेरे गालों पे जब बही थी

बहते-बहते

जाने कब वो जाकर

समन्‍दर में मिल गई थी ।

(2)

रूसवाईयों को छोड़कर

जब भी

वो गया था

घर की दहलीज

बड़ी देर सिसकती रही ।

(3)

जब भी कुछ टूटता है,

वह बिखर ही

क्‍यों जाता है

चाहे वह कांच का

कोई पात्र हो

या मिट्टी का खिलौना ...!!

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

भीगी यादें ....













कभी भी,

परखना नहीं आया

मुझे प्रीत को,

करके प्रीत निभाने में

यकीं किया है

सदा मैने ...।

मेरे दिल के

हर हिस्‍से में तुम्‍हारी

यादों की तस्‍वीरें

करीने से सजी थीं,

जब भी वे

तेरे दिल के

एक कोने में पड़ी याद को

दस्‍तक देती

तो तुम्‍हारा दिल

हाई सोसायटी के

लोगों की तरह

चारों तरफ देखता

और कहता

नहीं सब देख रहे हैं,

मैं मीटिंग में

व्‍यस्‍त हूं खाली होकर

मिलता हूं

तुम्‍हारे देर रात,

खाली हुए दिल में

सिर्फ व्हिस्‍की से भीगे

लफ्ज होते थे,

मेरी अश्‍कों से

भीगी यादें

उनके करीब जाने से

पहले दम तोड़ देती थीं ...।

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

अब तो बसन्‍त ...







भंवरे की गुनगुन

सुनने

को कलियों

हो जाओ तैयार

बीत गया

पतझड़ का मौसम

चलने लगी है

अब तो बसन्‍त बयार ...।

महका-महका सा

मधुबन है

चलती मंद-मंद

पवन है जब

तितली का उड़ना देखो,

तब फूलों का मुस्‍काना भी

छूकर जाती इन्‍हें

जब बसन्‍त बयार ।

नीला अम्‍बर भी

खुश होता,

धरती रानी भी मुस्‍काती

धानी चूनर ओढ़कर

गेहूं की नन्‍हीं बाली भी

खुश होती

कोयल की कूक से,

आमों की डाली भी लहराती

चलती जब बसन्‍त बयार ।