शनिवार, 21 अगस्त 2010

गूजें स्‍वर शहनाई का .....












नमी आंसुओं की उभर आई आंखों में जब,

गिला कर गई फिर किसी की बेवफाई का ।

बहना इनका दिल के दर्द की गवाही देता,

एतबार किया क्‍यों इसने इक हरजाई का ।

कितना भी रोये बेटी बिछड़ के बाबुल से,

दब जाती सिसकियां गूजें स्‍वर शहनाई का !

ओट में घूंघट की दहलीज पर धरा जब पांव,

चाक हुआ कलेजा आया जब मौका विदाई का ।

जार-जार रोये बाबुल मां ने छोड़ी न कलाई मेरी,

बहते आंसुओं में चेहरा धुंधला दिखे मां जाई का ।