मंगलवार, 25 मई 2010

फिसल गया वक्‍त ....


मैं किसी की आंख का ख्‍वाब हूं,

किसी की आंख का नूर हूं ।

भूल गया सब कुछ मैं तो खुद,

अपने आप से भी दूर हूं ।

हस्‍ती बनने में लगा वक्‍त मुझको,

पर अब मैं किसी का गुरूर हूं ।

फिसल गया वक्‍त रेत की तरह,

पर मैं ठहरा हुआ जरूर हूं ।

हक किसी का मुझपे मुझसे ज्‍यादा है,

मैं अपने वादे के लिये मशहूर हूं ।