शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

ऐसा क्‍यों होता है .....?














(1)

घनी पलकों की छाव में

सुन्‍दरता बढ़ जाती

नयनों की

इन पलकों की छांव का

एक बाल टूटकर

जब डूब जाता

नयनों के प्‍याले में

कितनी चुभन होती

जब तक निकल न जाता

आंख से ....!

(2)

ऐसे ही कुछ रिश्‍ते

भी हो जाते हैं

जिनसे कभी

जीवन महक जाता है

कभी कुछ रिश्‍ते

हो जाते हैं ऐसे

जो चुभने लगते हैं

उनकी चुभन

से जीवन की सारी

खुशियां छिन जाती हैं

ऐसा क्‍यों होता है ....

जिन के बिना

हम कभी

एक पल

रह नहीं पाते

फिर किसी मोड़ पर

उसी से

बच के निकल जाते हैं ....!!

आज मेरी यह 100वीं पोस्‍ट आप सबके सामने है,

इधर कुछ दिनों से आप सब के बीच नहीं पहुंच सकी

इसी खेद के साथ सदा ....


शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

यादें सिमटती गईं ....









सूनी अंधेरी रात में

यादों की गठरी

गिर गई

सारी यादें

धरती पर थीं पड़ी,

मैने उन्‍हें समेट कर

वापस गठरी में

रखना चाहा

पर वे आपस में

मिलकर परिहास करने लगीं

कोई खुद को अच्‍छी कहती

तो कोई खुद को,

सब मेरी हाथों से

दूर होती जा रही थीं

मैं किसी भी एक याद को

छोड़ना नहीं चाहती थी

थक गई जब मैं तो

इन्‍हे समेटने के लिए

मैने आंसुओं का सहारा लिया

हर याद पर एक-एक बूंद

गिरती गई और यादें सिमटती गईं ।