खामोशियां
गहरी होती गई जितनी
वह तन्हाई में
सिमटती गई उतनी
ख्यालों को बुनती कभी
पर वह उलझ जाते
यूं एक दूसरे में
वह सुलझाये बिना
फिर नये सिरे से
बुनना चालू कर देती
कभी बुनती वह तुझसे मिलना
फिर तेरा बिछड़ना
कभी जिनमें होता तेरा प्यार,
या होती बिन बात की तकरार
वादे जन्मों जनम साथ निभाने के
या फिर
दर्द जुदाई का देकर
बिन बताये चले जाना
उसे हैरानी होती
आपने आप पर
उसका हर सिरा तुझसे शुरू होकर
तुझपे ही खत्म होता
आज भी ।
कभी जिनमें होता तेरा प्यार,
जवाब देंहटाएंया होती बिन बात की तकरार
वादे जन्मों जनम साथ निभाने के
या फिर
दर्द जुदाई का देकर
बिन बताये चले जाना
बहुत सुंदर पंक्तियाँ..... मन को छू गयीं....
बेहतरीन शब्दों के साथ बहुत सुंदर कविता.....
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आपने बहुत दिनों के बाद कुछ लिखा..... आपकी तबियत तो ठीक है न....? आजकल मौसम भी काफी बदल रहा है....
Take care....
Regards.....
मेरा नया संस्मरण ज़रूर देखिएगा....
जवाब देंहटाएंमहफूज जी, अभी-अभी आपका संस्मरण पढ़ा, बहुत ही अच्छा लगा, वहां तक आने में अवश्य समय लगा, मौसम की चपेट में आ चुकी थी, अब ठीक हूं आप सभी के ब्लाग पर न पहुंच पाने का खेद है, वह कमी जल्द ही पूरी होगी ।
जवाब देंहटाएंशब्दों का चयन और भावनायें , अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने ! हर एक पंक्तियाँ सच्चाई बयान करती है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंउसे हैरानी होती
जवाब देंहटाएंआपने आप पर
उसका हर सिरा तुझसे शुरू होकर
तुझपे ही खत्म होता
आज भी ।
बहुत सुन्दर भाव !
beautiful poem....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंउसे हैरानी होती
जवाब देंहटाएंआपने आप पर
उसका हर सिरा तुझसे शुरू होकर
तुझपे ही खत्म होता
आज भी ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई
मन को छूती हुई सुंदर रचना ..... सच में खामौशी बहुत गहरी होती है कितने तूफान समेटे .........
जवाब देंहटाएंतेरे जाने का गम ....
जवाब देंहटाएंयूँ बुन गया जाले ख़ामोशी के
निकलना चाहती हूँ जितना
और उलझ जाती हूँ......!!
उसे हैरानी होती
जवाब देंहटाएंआपने आप पर
उसका हर सिरा तुझसे शुरू होकर
तुझपे ही खत्म होता
आज भी ।
सही नब्ज टटोली है जी!
बधाई!
अच्छी लगी आपकी यह रचना शुक्रिया
जवाब देंहटाएंदिल के कोने से कुछ ऐसी ही आवाज आती है.
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावित किया कविता की पंक्तियों ने.
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ये मौसम भी न जब तब बिना बताये चपेट में लेता रहता है. उम्मीद है अब सब खैरियत होगा...
उसे हैरानी होती
जवाब देंहटाएंआपने आप पर
उसका हर सिरा तुझसे शुरू होकर
तुझपे ही खत्म होता
आज भी ।
वाह जी क्या ख़ामोशी है खामोश हो कर भी वो सब कह गयीं जो जुबान नहीं कह सकी सुंदर प्रस्तुती के लिए बधाई
शब्दों का शब्दहीन खेल है खामोशी ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंखामोशी को पढ़ना आसान नहीं है।
very nice,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव , सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंNew post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
New post: कुछ पता नहीं !!!
रिश्तों के उलझाव कुछ ऐसे ही होते हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना!
~सादर!!!
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया ...
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर. शब्दों की सम्पूर्ण बुनाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव से परिपूर्ण
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