गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

खामोशियां ...


खामोशियां

गहरी होती गई जितनी

वह तन्‍हाई में

सिमटती गई उतनी

ख्‍यालों को बुनती कभी

पर वह उलझ जाते

यूं एक दूसरे में

वह सुलझाये बिना

फिर नये सिरे से

बुनना चालू कर देती

कभी बुनती वह तुझसे मिलना

फिर तेरा बिछड़ना

कभी जिनमें होता तेरा प्‍यार,

या होती बिन बात की तकरार

वादे जन्‍मों जनम साथ निभाने के

या फिर

दर्द जुदाई का देकर

बिन बताये चले जाना

उसे हैरानी होती

आपने आप पर

उसका हर सिरा तुझसे शुरू होकर

तुझपे ही खत्‍म होता

आज भी ।

23 टिप्‍पणियां:

  1. कभी जिनमें होता तेरा प्‍यार,

    या होती बिन बात की तकरार

    वादे जन्‍मों जनम साथ निभाने के

    या फिर

    दर्द जुदाई का देकर

    बिन बताये चले जाना


    बहुत सुंदर पंक्तियाँ..... मन को छू गयीं....

    बेहतरीन शब्दों के साथ बहुत सुंदर कविता.....

    ---------------------------------------------

    आपने बहुत दिनों के बाद कुछ लिखा..... आपकी तबियत तो ठीक है न....? आजकल मौसम भी काफी बदल रहा है....

    Take care....

    Regards.....

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  2. महफूज जी, अभी-अभी आपका संस्‍मरण पढ़ा, बहुत ही अच्‍छा लगा, वहां तक आने में अवश्‍य समय लगा, मौसम की चपेट में आ चुकी थी, अब ठीक हूं आप सभी के ब्‍लाग पर न पहुंच पाने का खेद है, वह कमी जल्‍द ही पूरी होगी ।

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  3. शब्दों का चयन और भावनायें , अति सुन्दर

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  4. बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने ! हर एक पंक्तियाँ सच्चाई बयान करती है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!

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  5. उसे हैरानी होती

    आपने आप पर

    उसका हर सिरा तुझसे शुरू होकर

    तुझपे ही खत्‍म होता

    आज भी ।

    बहुत सुन्दर भाव !

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  6. उसे हैरानी होती

    आपने आप पर

    उसका हर सिरा तुझसे शुरू होकर

    तुझपे ही खत्‍म होता

    आज भी ।
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई

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  7. मन को छूती हुई सुंदर रचना ..... सच में खामौशी बहुत गहरी होती है कितने तूफान समेटे .........

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  8. तेरे जाने का गम ....

    यूँ बुन गया जाले ख़ामोशी के

    निकलना चाहती हूँ जितना

    और उलझ जाती हूँ......!!

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  9. उसे हैरानी होती

    आपने आप पर

    उसका हर सिरा तुझसे शुरू होकर

    तुझपे ही खत्‍म होता

    आज भी ।


    सही नब्ज टटोली है जी!
    बधाई!

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  10. अच्छी लगी आपकी यह रचना शुक्रिया

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  11. दिल के कोने से कुछ ऐसी ही आवाज आती है.
    बहुत प्रभावित किया कविता की पंक्तियों ने.
    --
    ये मौसम भी न जब तब बिना बताये चपेट में लेता रहता है. उम्मीद है अब सब खैरियत होगा...

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  12. उसे हैरानी होती

    आपने आप पर

    उसका हर सिरा तुझसे शुरू होकर

    तुझपे ही खत्‍म होता

    आज भी ।
    वाह जी क्या ख़ामोशी है खामोश हो कर भी वो सब कह गयीं जो जुबान नहीं कह सकी सुंदर प्रस्तुती के लिए बधाई

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  13. शब्दों का शब्दहीन खेल है खामोशी ।

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  14. सुंदर रचना
    खामोशी को पढ़ना आसान नहीं है।

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  15. रिश्तों के उलझाव कुछ ऐसे ही होते हैं...
    बहुत सुंदर रचना!
    ~सादर!!!

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  16. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया ...
    सादर

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  17. बहुत सुन्दर. शब्दों की सम्पूर्ण बुनाई.

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  18. बहुत सुन्दर भाव से परिपूर्ण

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