मंगलवार, 29 जुलाई 2014

इश्‍क़ की किताबों में!!!!!









किसी सफ़े पे थी
खिलखिलाती याद उसकी
किसी सफ़े पे था
उसकी मुस्‍कराहटों का पहरा
इश्‍क़ की किताबों में
करवटें बदलती रूहों का जागना
उंगलियों के पोरों की छुँअन से
फिर कहना उनका हौले-हौले से
मुहब्‍बत के नर्म एहसासों का होता
पलकें कई बार
झपकना भूल ही जाती थीं
कई बार लगता
निकलकर इनमें से कुछ एहसासों ने
घेरा बना लिया है
मेरे इर्द-गिर्द औ’ कहा था
अपने हिस्‍से का सच तो
जाना था मैने उन्‍हें
कुछ यूँ भी ...
...
सच मुहब्‍बत कभी
मरकर भी मरती नहीं
दूर होकर भी बिछड़ती नहीं
दिलों से दिलों का ये रिश्‍ता
जिंदा रहता है
रूहें जो सफ़र में रहती हैं
ताउम्र अपनी !!!!!
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शनिवार, 19 जुलाई 2014

वो मिली तो मुस्‍कराई भी नहीं :)

टाँग दिया है
एक बार फिर से
हर एक दर्द को
ग़म के कील पर
और मुस्‍कान की
लीपा-पोती करके
भर दिया है
दीवार के हर एक छेद को
तो भी अब जाने क्‍यूँ
पहले जैसी रौनक नहीं है !!
...
पलस्‍तर उधड़ा-उधड़ा
गवाही दे जाता है
गौर से नज़र डालने पर
सीलन भी
चुगलखोरी से बाज़ नहीं आती
एक बड़े पोस्‍टर के नीचे से
झड़ती रेत को
बुहार के फेंक आती हूँ
जब-तब सबकी नज़र बचाकर
जाने कब तुम आ जाओ
मेरे घर मेहमान बनकर
तुम्‍हारी आवभगत में
कोई कसर न रहे  !!!
 ...
ऐ जिंदगी 
तुम भूल मत जाना
मुस्‍कराने का सलीका
कहीं आने वाला कोई लम्‍हा
मेरी शिकायत न कर दे
तुमसे ये कहते हुये
वो मिली तो मुस्‍कराई भी नहीं :)

....  

रविवार, 6 जुलाई 2014

फ़रेब की स्‍लेट पर !!!

जब भी मेरी उम्मीद
टूटकर मिलती तो बस
इतना ही कहती तुम जीने के लिये
किसी की उम्मीद बन जाना
कुछ मुश्किल तो होगा
पर तुम्हे जीना आ जाएगा !!!
....
सहानुभूति के शब्‍द
अक्‍़सर फ़रेब की स्‍लेट पर
लिखे जाते हैं
जहाँ सच बात को
बेर्इमानी के छींटे डालकर
मिटा दिया गया होता है
बड़ी ही सफ़ाई से !!!
.....
सच की ताकत
रूहों को पाक़ रखती है
तभी तो 
जब भी ज़मीर जागता है
सच की प़नाह लेता है !!!