अंज़ाम की परवाह
बिना किये जब
जिंदगी के साथ चलता है कोई
कदम से कदम मिलाकर तो
जीने का सलीक़ा आ जाता है
कदम से कदम मिलाकर तो
जीने का सलीक़ा आ जाता है
...
जिंदगी चलती है
मुस्कराहटों के साथ जब भी
तो वक़्त की दौड़ तेज़ हो जाती है
हसरतें मचलती हैं दबे पाँव
ख्वाहिशें झाँकती हैं बन के ख्व़ाब
बँद पलकों में अक़्सर
तो फि़र सोचना कैसा ?
क्या होगा, क्यूँकर होगा ???
....
खिलखिलाहट को आज
बन के हँसी गूंज जाने दो
खामोशी के हर कोने में
उम्मीदों को दौड़ने दो
पूरे मनोयोग से
एक नई आशा के साथ
जहाँ ख्वाबों ने सीखा हो
सिर्फ साकार होना
आकार उनका कुछ भी हो
इस बात का हर फ़र्क मिटाकर !!!!!