उड़ जाती नींद आंखों से क्यों,
जब ख्वाब कोई टूट जाता है ।
गुस्ताखियां याद आती हैं क्यों,
कोई जब माफी मांग के जाता है ।
बदलता वक्त है हम दोष देते क्यों,
उसे जब कोई छोड़ के चला जाता है ।
पतझड़ में पीले पत्तों की जुदाई क्यों,
जो ये शाख से अपनी ही टूट जाता है ।
खामोशी का हर लम्हा सूना क्यों,
हर पल इतना गुमसुम कर जाता है ।